लूँगा की सामुदायिक जल पहल
रामकुमार विद्यार्थी
झारखंड राज्य के गुमला जिले के रायडीह प्रखण्ड मे स्थित 89 आदिवासी परिवार वाला प्राकृतिक सौंदर्य का धनी गाँव है “लूँगा” । इस गाँव मे खाद्यान्न एवं पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए जल संरचनाओं के साज – संवार की विशेष सामुदायिक पहल की जा रही है। जलवायु परिवर्तन के साथ बढ़ते जल संकट को रोकने मे इस तरह की कोशिश का न सिर्फ महत्वपूर्ण योगदान है बल्कि टिकाऊ खेती की अवधारणा को मूर्त रूप देने मे सामुदायिक जल प्रबंधन एक आवश्यक प्रक्रिया है।
सखुआ,महुआ,कुसुम,पुटकल से भरे सघन वन, पहाड़ और धान के खेतों से घिरे लूँगा गाँव से गुजरती है एक बरसाती नदी । स्थानीय लोग इसे लूँगा नदी के नाम से जानते हैं, हालांकि कई बुजुर्ग इसकी उत्पत्ति सिकोई गाँव के पहाड़ों से होने के कारण इसे पहाड़ी नदी भी कहते हैं। यह नदी सिकोई, तुरीडीह, कापोडीह,लूँगा, सिपरिंगा, केराडीह जैसे कई गाँवों के लिए खेतों की सिंचाई और पशुओं को पेयजल उपलब्ध कराने का महत्वपूर्ण संसाधन रहा है। इस नदी पर 60 के दशक मे बने कुछ स्टॉप डैम हैं जो गुजरते समय के साथ जर्जर और अनुपयोगी होते जा रहे हैं ।
जब वर्ष 2021 के कोरोना काल के बीच संस्था विकास संवाद द्वारा एचडीएफसी बैंक परिवर्तन के सहयोग से लूँगा मे पहल परियोजना की शुरुआत की गयी तब ग्राम विकास समिति की बैठक मे गाँव मे बने ऐसे ही एक स्टॉप डैम के मरम्मतीकरण की मांग उठाई गयी । लूँगा की ग्राम विकास मित्र वर्षा रानी बखला बताती हैं कि इस समूचे क्षेत्र मे वर्षा आधारित धान व मड़ुआ जैसे फसल की खेती ही आजीविका का मुख्य जरिया है। किन्तु समस्या यह है कि अप्रैल-मई महीना आते – आते यहाँ के ज़्यादातर नदी-नाले सूखने लगते हैं। गाँव के बुजुर्ग किसान देव नारायण गोप बताते हैं कि कुछ साल पहले यह स्थिति नहीं थी 1966-67 के दौरान लूँगा नदी पर बना स्टॉप डैम कई गाँव के सैकड़ों किसानों की खेती – किसानी का मुख्य सहारा था। इस स्टॉप डैम का पानी चैनल के जरिये लूँगा, पाकर टोली, चाँपाटोली, कापोलूँगा, सिपरिंगा, बरटोली गाँव के तक पहुंचता रहा जिससे किसान दो फ़सली खेती कर पाते थे । लेकिन पिछले 10-15 साल से यह स्टॉप डैम मिट्टी के कटाव हो जाने और डैम के अंदरूनी हिस्से मे रेत, मिट्टी भर जाने के कारण अनुपयोगी हो गया था। इस स्टॉप डैम के मरम्मतीकरण व चैनल के सुधार कार्य को लेकर ग्राम पंचायत से जिला प्रशासन तक कई बार मांग की गई पर बात नहीं बनी । फिर जब गाँव मे पहल परियोजना शुरू हुई तब टिकाऊ खेती को बढ़ाने के लिए एक बार फिर इस स्टॉप डैम के मरम्मतिकरण की मांग की गयी। तब परियोजना द्वारा सामुदायिक सहभागिता के शर्त के साथ इस जल प्रबंधन कार्य की शुरुआत की गयी।
शुरु मे इस काम मे कुछ चुनौतियां भी आई जिसमे श्रमदान के लिए समुदाय को एकजुट करने और उनका अंशदान जुटाने की दिक्कत रही है। वर्षा रानी के अनुसार गाँव मे लगातार 5 बार यह काम करने की तैयारी व भागेदारी को लेकर बैठक रखी गयी। इस बैठक मे सरकारी काम और जन भागेदारी से होने वाले काम के अंतर और जल प्रबंधन कार्य को लेकर बातचीत की गयी जिसके बाद कापो व लूँगा गाँव के लगभग 40 युवा, बुजुर्ग व महिलाओं ने मिलकर इस काम को आगे बढ़ाया। इस काम की निगरानी करने वाले शंकर बड़ाईक कहते हैं कि लूँगा नदी पर बने स्टॉप डैम के मरम्मतीकरण से स्थानीय लोगों को रोजगार तो मिला ही, अब डैम मे पानी रुकने से किसान रबी फसलों की खेती भी कर सकेंगे। एक अनुमान के मुताबिक इस जल संरचना सुधार से लगभग 40 हेक्टेयर से अधिक भूमि मे सिंचाई हो सकेगी। वहीं इससे मछली पालन की संभावना को भी जोड़कर देखा जा रहा है ।
कापोडीह किसान पाठशाला से जुड़े विलफ़र लकड़ा व संदीप टोप्पो कहते हैं कि इस तरह के स्टॉप डैम मरम्मतीकरण कार्य से उनके गाँव मे भी सिंचाई और दो फ़सली खेती की सुविधा बढ़ेगी जिससे परिवारों को रोजी-रोटी की तलाश मे बड़े शहरों मे भटकना नहीं पड़ेगा। लूँगा वासियों द्वारा किए जा रहे सहभागिता पूर्ण जल प्रबंधन कार्य को देखते हुये कपोडीह सहित कई गाँव के किसानों ने स्थानीय जल संरचनाओं को सहेजने-संवारने को लेकर कार्ययोजना बनानी करनी शुरू कर दी है। गुमला जैसे आकांक्षी जिले के वंचित समुदायों की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए टिकाऊ खेती और सामुदायिक जल प्रबंधन के इन छोटे किन्तु महत्वपूर्ण प्रयासों को विशेष संबल देने की आवश्यकता है।