कुपोषण के दुष्चक्र से ऐसे निकालकर लाई रामकन्या
जो उम्र बच्चों के खेलने-पढ़ने की हो, उसमें अगर शादी कर दी जाए तो किसी घर की बहू बनी बालिका को कैसी परेशानियां उठानी पड़ती है यह पता चलता है सतना जिले की रामकन्या के संघर्ष से। महज 13 साल की उम्र में ब्याह दी गई रामकन्या के जीवन का बड़ा हिस्सा चार बच्चों को कुपोषण के दुष्चक्र से निकालने में बीत गया। रामकन्या बताती हैं कि दस्तक अभियान की दीदियों से जानकारी नहीं मिलती तो शायद मैं कभी समझ ही नहीं पाती कि बच्चे कमजोर क्यों हैं और उन्हें स्वस्थ कैसे रखा जा सकता है ?
रामकन्या की शादी सतना जिले के मझगवां ब्लॉक में मुड़खोहा गांव के सुखराज सिंह के साथ हुई थी। शादी के तीन साल बाद 16 साल की उम्र में रामकन्या ने बेटी सुंता को जन्म दिया। इसके बाद उसने तीन और बच्चों मनोज, प्रमिला और सूर्यांश का जन्म दिया। ये सभी बच्चे भी बचपन से ही कुपोषण के शिकार रहे। कुपोषण के खिलाफ रामकन्या और उसके बच्चों की जंग मे विकास संवाद द्वारा संचालित दस्तक परियोजना ने सहयोगी भूमिका निभायी है।
पारिवारिक पृष्ठभूमि और जीवनयापन
आदिवासी समुदाय से आने वाले रामकन्या एवं सुखराज सिंह गोंड के पास कुल 2 एकड़ जमीन है, उसमें से भी सिर्फ एक एकड़ ही खेती के लायक है। रामकन्या पंचायत के काम में मजदूरी और वनोपज़ संग्रह करके बच्चों का पालन-पोषण करती है। पति सुखराज ट्रक चलाने का काम करता है। उनकी बड़ी बेटी, 14 साल की सुन्ता कक्षा 6 में और 10 साल का मनोज कक्षा 4 में पढ़ते हैं। साढ़े चार वर्ष की प्रमिला और ढाई साल का सूर्यांश मुड़खोहा की आंगनवाड़ी से जुड़े हैं। रामकन्या का परिवार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत पात्र है लेकिन सिर्फ 4 सदस्यों का नाम ही पात्रता सूची में दर्ज होने के कारण 20 किलो खाद्यान्न ही मिल पाता है।
जन्म से कुपोषित बच्चों को चाहिए था विशेष खान–पान
कोविडकाल में इस परिवार की परेशानियां ज्यादा बढ़ गईं। तब दस्तक परियोजना के जरिए दो बार राशन और पोषण वाटिका के लिए की गई मदद से इन्हें बड़ी सहायता मिली। ‘दस्तक महिला समूह’ की सदस्य रामकन्या बताती हैं कि उनके बच्चों को स्कूल से मध्याह्न भोजन व आंगनवाड़ी से पोषण आहार तो मिलता है लेकिन कुपोषित बच्चों को विशेष रूप से खानपान की कमी महसूस होती रही। रामकन्या ने मेहनत–मजदूरी के साथ ही अपनी बाड़ी मे पोषण वाटिका तैयार की। जिससे परिवार को साल में 5 से 6 महीने हरी सब्जी-भाजी खाने को मिलने लगी।
कच्ची उम्र में बहू की जिम्मेदारी
रामकन्या बताती हैं कि ‘मेरा विवाह 13 साल में ही हो गया। ससुराल में कम उम्र में ही मुझे परिवार की देखरेख, भोजन बनाने और कृषि कार्य में पति के साथ हाथ बंटाना होता था। 16 साल की उम्र में ही मैं पहली बार मां बनी। तीन साल बाद दोबारा मां बनी और पुत्र मनोज का जन्म हुआ। जन्म के समय उसका वजन 2 किलो था जो कि कमजोर हालत में था तब पहली बार जाना कि वह कुपोषित है। 6 महीने तक मैं मनोज को स्तनपान कराती थी और साथ ही घर के कामकाज के साथ जंगल से लकड़ी लाना, आंवला एवं तेंदूपत्ता तोड़ना आदि काम भी करती थी। कामकाज की भागदौड़ में कभी–कभी बच्चे को छोड़कर भी जाना पड़ता था जिसके कारण बच्चे का पेट नहीं भरता था, वह बहुत कमजोर हो गया। तब उसे पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में भर्ती कराया। डॉक्टर और नर्स के बताए अनुसार खानपान पर ध्यान देने के बाद मनोज स्वस्थ हुआ। मनोज के बाद एक बेटी मिन्ता का जन्म हुआ। वह जन्म से ही बहुत ही कमजोर थी और लगातार बीमार रहती थी। कुछ महीनों बाद ही उसकी मौत हो गई।’
प्रमिला और सूर्यांश का कुपोषण से संघर्ष
घर की हालत को देखते हुए रामकन्या का पति बाहर जाकर काम करने लगा। कुछ सालों बाद उसने एक बेटी प्रमिला का जन्म दिया। वह भी खाना नहीं खाने के कारण दिन ब दिन कमजोर होती गई। प्रमिला की स्थिति को देखते हुए और दस्तक समूह की चंदा, मीना व दीपा सिंह द्वारा प्रेरित करने के बाद दो बार एनआरसी मे भर्ती करवाया। रामकन्या ने बताया कि ‘एनआरसी से आने के बाद मैंने अपने बच्ची के खानपान में अधिक ध्यान दिया। इसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और संस्था विकास संवाद के कार्यकर्ता दीदियों ने वजन निगरानी करके व पोषण आहार दिलाकर बड़ी मदद की। इस तरह सबके प्रयास से प्रमिला अब स्वस्थ हो गई है। फरवरी 2022 में प्रमिला का वजन 11 किलो 900 ग्राम और लंबाई 88 सेंटीमीटर रही जो जोकि सामान्य श्रेणी में आ गई।’
इसी बीच एक और पुत्र सूर्यांश का जन्म हुआ। वह भी जन्म से कमजोर था। दस्तक परियोजना की पूजा एवं युवा समूह की चंदा ने सूर्यांश का वजन लिया तो 5 किलो 600 ग्राम एवं लंबाई 65 सेंटीमीटर थी। उन्होंने बच्चे को एनआरसी मे भर्ती करवाने की सलाह दी। चंदा बताती हैं कि ‘हमने रामकन्या को घर में पोषण वाटिका लगाने के लिए भी बीज दिलाते हुए प्रेरित किया और घर पर बच्चों की देखभाल का भरोसा दिलाया। तब रामकन्या सूर्यांश को लेकर 14 दिन तक मझगवां स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र मे भर्ती रही। वह तीसरे बच्चे को भी कुपोषण के दुष्चक्र से बाहर निकालने में सफल रही।
कुपोषण के खिलाफ जारी रहेगी रामकन्या