कुपोषण के सामुदायिक प्रबंधन की राह दिखाता “ओबरी”
रीवा जिले के जवा ब्लाक का सबसे आखिरी गाँव है ओबरी. पहाड़ियों और जंगलों के बीच स्थित इस आदिवासी बाहुल्य गाँव की ज़्यादातर जमीन असिंचित है. बुनियादी सुविधाओं की कमी से घिरे इस गाँव की जनसंख्या 860 है. छिटपुट खेतीबाड़ी के साथ दिहाड़ी मजदूरी और वनोपज़ संग्रहण लोगों की आजीविका का प्रमुख स्रोत रहा है. बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो गाँव के बच्चों को हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए 15 किमी दूर ग्राम कोटवा जाना पड़ता है. इस गाँव मे सितंबर 2015 में जब दस्तक परियोजना की शुरुआत हुई तब 0 से 5 वर्ष के 26 बच्चे मध्यम और 14 बच्चे अतिकम वजन के थे. उसके बाद से बाल सेवाओं की नियमित सामुदायिक निगरानी व सहयोग, पोषण खानपान संबंधी जागरूकता और पोषण बाड़ी के निरंतर उपयोग से कुपोषित बच्चों और ऐनीमिक माताओं की स्थिति मे लगातार सुधार हो रहा है. इस गाँव मे स्थानीय समुदाय ने संस्था विकास संवाद के साथ मिलकर बाल स्वास्थ्य एवं पोषण प्रबंधन की दिशा मे मजबूत कदम बढ़ाया है.
ओबरी में कार्यरत सामुदायिक कार्यकर्ता सुरेश कुमार कोल बताते हैं कि गाँव मे बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य मे बदलाव लाने के लिए समुदाय को अपने भरोसे मे लेना जरूरी था सो उन्होने सबसे पहले स्थानीय स्तर पर मनरेगा योजना से रोजगार दिलाने के लिए ग्राम पंचायत बौसड़ के साथ समन्वित प्रयास किए. इसके साथ ही गाँव मे दस्तक महिला, युवा और किशोरी समूह के जरिये समुदाय को एकजुट करने की पहल की गयी जिनकी कुपोषण को कम करने मे अहम भूमिका रही है. महिलाओं और किशोरियों ने कुपोषण के कारणों की पहचान करते हुये गाँव मे नियमित आंगनबाड़ी खुलने, बच्चों व माताओं को पोषण व टीकाकरण से जोड़ने का काम किया तो स्वयं भी एनीमिया और सही खान-पान को लेकर अपने व्यवहार मे बदलाव किया. महिला समूह ने स्थानीय खाद्य सामग्री के उपयोग से स्वादिष्ट व्यंजन बनाने और सामूहिक प्रस्तुतीकरण के 6 से अधिक बार आयोजन किए. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता शिवकुमारी यादव के अनुसार दस्तक परियोजना से बच्चों के कुपोषण मे कमी आयी है और उन्हें समुदाय का भी अपेक्षित सहयोग मिलने लगा है.
कुपोषण के कारणों को समझते हुये समुदाय ने यह भी देखा कि उनके खाद्यान का बड़ा हिस्सा खेती से आता है किन्तु असिंचित भूमि होने तथा रासायनिक खादों के बढ़ते उपयोग से चुनौतियाँ अधिक बढ़ती जा रही हैं. तब दस्तक परियोजना के साथियों ने गाँव में जैविक खेती व स्थानीय जल प्रबंधन से जुड़े काम की शुरुआत की. आज ओबरी गाँव के 150 परिवारों मे पोषणबाड़ी विकसित हुई है जिससे हरी पत्तेदार सब्जियाँ व पपीता, अमरूद आदि फल भोजन मे नियमित रूप से उपभोग किया जाने लगा है.
गाँव के दस्तक युवा समूह ने पंचायत एवं कृषि विकास विभाग से समन्वय करके अल्प पोषण से प्रभावित परिवारों को रोजगार व बीज उपलब्ध कराये जाने को समय – समय पर सुनिश्चित किया और जर्जर पड़े कुओं को श्रमदान से सुधार करते हुये लगभग 60 परिवारों के पेयजल समस्या को सुलझाया है. इसके साथ ही गाँव मे नदी पर पुल व पक्की सड़क न होने के कारण जननी सुरक्षा की समस्या को लगातार प्रशासन के समक्ष उठाते हुये समस्या हल हुई है. इस सामुदायिक पहल मे जब सभी अपनी भूमिका निभाने लगे तो बच्चे कैसे पीछे रहते सो दस्तक बाल समूह ओबरी के 15 बच्चों ने भी लगभग 95 पौधे लगाकर अपने आसपास हरियाली को बढ़ाने का प्रयास किया है. ये बच्चे अपने गाँव व जंगल से जुड़े जैव विविधता को जानने- समझने की निरंतर कोशिश कर रहे हैं.
दस्तक महिला समूह सदस्य गुलाबकली यादव का कहना है कि – “गाँव म जब से दस्तक परियोजना शुरू भइ ही ओकरे बाद से गाँव के महिलन अपने-अपने बच्चन के देखभाल, साफ-सफाई अउर खान-पियन के ध्यान बहुत अच्छे से देइ लागे हन जेंहमा से अब गाँव में कमजोर बच्चन बहुत कम बचे हैं.” संगीता खैरगार का कहना है कि –“गाँव मा जननी एक्सप्रेस, एम्बुलेंस, जरूरत पडै पर समय से आबै लाग ही जेकरे कारण अब बच्चन के जनम अस्पताल मा होई लाग हइ.”
गीता खैरगार, सोहागी खैरगार व प्रीतु यादव जैसी किशोरियां अब अपने स्वास्थ्य के बारे मे चर्चा करते हुये संकोच नहीं करती. वे बताती हैं कि कुछ साल पहले ऐसा नहीं था गाँव की किशोरियों के मन में अपने विकास और पोषण को लेकर कई तरह की भ्रांतियां रहती थी. उनको यह नहीं पता था कि उनका वजन कितना होना चाहिए, उनके शरीर में कितना खून होना चाहिए जिसके कारण से जाने-अनजाने उनको बीमारियां अपने चपेट में ले लेती थी लेकिन अब किशोरियां अपने शारीरिक विकास व खानपान को लेकर काफी जागरूक हुई हैं.
इस तरह सुविधाओं से वंचित ओबरी गाँव ने स्वयं सेवी संस्था विकास संवाद द्वारा संचालित की जा रही दस्तक परियोजना के सहयोग, समुदाय की सक्रिय सहभागिता तथा प्रशासन के साथ बेहतर समन्वय से काम करते हुये कई गांवों को कुपोषण के सामुदायिक प्रबंधन की राह दिखाई है.
— रामकुमार विद्यार्थी