3600 समस्याओं का निकाला हल
मेरे मायके में माता-पिता के साथ, हम तीन बहन और एक भाई थे। मेरे पिता अक्सर बीमार रहते थे, पिता के अलावा घर पर कोई कमाने वाला नहीं था, हमारी आर्थिक स्थिति खराब थी। मैं आठवीं में पढ़ती थी, तब तक दो बड़ी बहनों की शादी हो गयी थी, उसके बाद पिता के इलाज में जो कुछ था सब खर्च हो गया। यहां तक की हमारी जो जमीन थी वह भी गिरवी रखी थी, एक समय तो ऐसा आया कि हमें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही थी। कई बार तो मैं स्कूल ना जाकर किसी के खेतों पर काम करने चले जाती कि थोड़े पैसे मिल जाएंगे। इसी बीच 1999 में जिस दिन मेरे पिताजी का देहांत हुआ उसके अगले दिन सुबह मेरी आठवीं की परीक्षा का पहला पेपर था। परिस्थितियां और मन बिल्कुल साथ नहीं दे रहे थे लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारी। मेरी बोर्ड की परीक्षा थी और मैंने वो परीक्षा दी, और आगे उस परीक्षा में मैं पास भी हो गयी।
मैं आठवीं के बाद और आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन नहीं पढ़ पायी। गाँव में लोगों की मानसिकता आज भी वही है – “लड़की सयानी हो गई है, ज्यादा पढ़ाना नहीं, घर तो संभालना है, पढ़ेगी तो किसी के साथ भाग जाएगी और भी ना जाने क्या क्या “। बस ऐसे ही ताना मारते रहे और फिर मेरी पढ़ाई रोक दी गयी। लगभग सालभर बाद ही पास के एक गांव हाथीधर रजत में मेरी शादी कर दी गयी। उस वक़्त तो मुझे ससुराल की भी समझ नहीं थी, लेकिन समय के साथ मैं भी ससुराल में समाज के बंधनों से बन गई। पहले घर-परिवार, घर का काम, फिर बच्चे संभालने लगी और इसे ही अपनी किस्मत समझने लगी। जैसे एक मेंढक कुआं को ही अपनी दुनिया मानता है, वैसे ही मैंने भी अपने लिए इस घर की चार दीवारों को अपनी दुनिया मान लिया था।
जब मेरे गांव में आजीविका मिशन के माध्यम से आंध्र प्रदेश से समूह बनाने के लिए एक टीम आई उस टींम में जो दीदियां थी वो रोज़ गांव में घूम-घूम कर जानकारी देती। उन्होंने गांव में चार समूह भी बना लिए। एक दिन मैं कुएं पर पानी भरने गई तो तीन चार महिलाएं समूह के बारे में बात कर रही थी, उनके समूह में एक सदस्य कम था, मैंने भी जानना चाहा। उन्होंने कहा बैठक में आना, सब समझ लेना फिर जुड़ना।फिर मैं जब बैठक में गई तो मुझे पूरी जानकारी मिली, समूह में जुड़ने से फायदा समझ में आया तो मैं भी समूह में जुड़ गयी।
समूह से जुड़कर छोटी छोटी बचत, लेनदेन करने लगी लेकिन मेरा समूह से जुड़ना, मेरे परिवार में मेरे पति सास ससुर किसी को पसंद नहीं था। कहने लगे कि घर का काम छोड़कर टाइम पास करने जाती है और इस बात पर घर पर हर दिन झगड़ा, किच-किच होती रहती। छोटी-छोटी बचत की कुछ गतिविधि भी कीं तो कुछ आमदनी भी बढ़ी, लेकिन फिर भी वो लोग संतुष्ट नहीं थे। एक दिन तो, मेरे पति ने मारपीट की और बोले-“तुझे समूह में रहना है या घर में”।
मैं बहुत दुखी हुई और मैं अपने मायके चली गयी। मैं वही से समूह की बैठकों में हर सप्ताह आती और चली जाती दो महीना मायके से आना-जाना किया। दो महीने बाद फिर एक दिन मेरे ससुराल वालों को मेरी बात समझ आई और वो मुझे लेने आ गए, मैं ख़ुशी-ख़ुशी उनके साथ घर वापस आ गयी ।
दीदियों के साथ समूह के माध्यम से मुझे 2014 में जेंडर के प्रशिक्षण में जाने का मौका। इस प्रशिक्षण के दौरान बहुत अच्छा अनुभव रहा, बहुत सी नयी बातें सीखी, समझी और खुद में बदलाव लाने के बारे में भी सोचा ।
उधर मेरे मायके में मेरे काकाओं ने हमारी कुछ जमीन पर कब्ज़ा कर लिया था, हमने कोर्ट में केस किया, पता चला मेरे पिताजी कि 18 एकड़ जमीन है । केस की पेशी के लिए पैसों कि जरुरत थी, मैंने अपने समूह में 6000 का लोन लिया, चार पेशियां हुई और केस हमारे पक्ष में आया। यह सब देख कर मैंने महसूस किया कि मैं अब अपने जैसी और महिलाओं के हक और अधिकार के लिए काम करूंगी।
मैंने अपने इरादों को मजबूत करते हुए काम शुरू किया, समूह से मेरा समता सखी के रूप में चयन किया गया। जिसके अंतर्गत मैंने 5 गांव में 2800 महिलाओं को जेंडर पर प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षण के दौरान महिलाओं ने मेरे साथ बहुत से मुद्दे साझा किये जैसे- पेंशन, जमीन, बिजली, सड़क, पानी, घरेलू हिंसा, कृषि संबंधित मुद्दे। ये सभी मुद्दे हमने CLF (संकुल) में रखें। 3 और CLF के माध्यम से संबंधित विभागों के साथ मीटिंग हुई जिसमे लोक अधिकार केंद्र खुलवाना तय हुआ । 2017 में लोक अधिकार केंद्र का उद्घाटन हुआ जिसमें समता सखियों का संचालिका के रूप में चयन होना था, जिसके लिए मुझे चुना गया। अब हमारी महिलाओं को लोक अधिकार केंद्र के माध्यम से काम करवाना आसान हो गया, उन्हें इधर-उधर विभागों में भटकना नहीं पड़ता था। 2017 से अभी तक केंद्र में 3820 केस आ चुके हैं उनमें से 3600 का निराकरण हुआ, 220 केस संबंधित विभागों में जमा है। मेरे इस काम को देखकर 2018 में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर जी के सामने मुझे अपनी बात रखने बुलाया। मैं चार बार मुख्यमंत्री शिवराज चौहान जी से भी मिली, इन सबसे मुझे आगे बढ़ने के लिए और प्रेरणा मिली, अब मैं और बेहतर और अच्छा काम करूंगी।
मेरे इस काम से आज मेरी पहचान बनी, मुझे मान-सम्मान मिला। पहले मेरी पहचान किसी बेटी, बहू, पत्नी के रूप में ही होती थी, अब मेरी खुद की एक पहचान है तो अच्छा लगता है। मैं आगे भी ऐसे ही काम करती रहूंगी।