पोषण बाड़ी बनी स्वस्थ जीवन का आधार
बात थोड़ी पुरानी है लगभग डेढ़ साल पुरानी है, काम के सिलसिले में मैं पन्ना के रानीपुर गांव में 12 सितंबर 2021 को गया था तो एक घर में एक छोटी सी बेटी को देखा जो लगभग तीन माह की थी नाम था मीरा, मीरा के माथे और आंख पर बड़े – बड़े फोड़े थे, तुरंत समझ नही आया कि क्या किया जाए
मीरा बड़ी होती रही और कुछ नही हुआ, पिछले दिनों इसके माँ – बाप इसे लेकर पलायन पर इंदौर आये तो मीरा की तबियत खराब हुई डॉक्टरों ने कहा कि ऑपरेशन तुरंत करना होगा पर इसका आयुष्मान कार्ड ना होने से ऑपरेशन नही हो पा रहा था, गरीब आदिवासी मजदूर परिवार पुनः पन्ना नही जा सकता था, सो हमने विकल्प खोजे और आयुष्मान के जिला अधिकारी श्री मुन्नालाल जी यादव से बात की तो उन्होंने बताया कि बिटिया तीन वर्ष से कम है तो इसका आधार और आयुष्मान कार्ड तो नही बनेगा पर माँ या पिता का कार्ड हो तो इलाज हो सकता है
गुमला जिले में पालकोट प्रखंड के बागेसरा गाँव में रहने वाली प्रभादेवी बताती हैं कि, एक छोटी सी पोषण वाटिका ने हमारा जीवन बदल दिया है। पहले मैं बहुत बीमार रहती थी, डॉक्टर और दवाइयों पर बहुत पैसा खर्च होता था। लेकिन जब से हमने अपने घर की पोषण बाड़ी में उगाई हुई सब्जियों और फलों को खाना शुरू किया है, तब से हमारा बीमार होना कम हो गया है। इलाज और दवाइयों पर खर्च भी अब न के बराबर होता है।
प्रभादेवी के परिवार में कुल 7 सदस्य हैं। पति सुकर लोहरा खेती और मजदूरी का काम करते हैं। 3 लड़के और 2 लड़कियां हैं। उनके सभी बच्चे नियमित स्कूल जाते हैं। उनके पास 1.25 एकड़ खेती हैं। पशुधन में 1 गाय और 2 बकरियां हैं। इन सभी की देखभाल प्रभादेवी खुद करती हैं।
अपने घर के काम की देखभाल के साथ साथ प्रभादेवी अपने गाँव के विकास कार्यों में भी सक्रियता से सहयोग करती हैं। पहल परियोजना के अंतर्गत गठित ग्राम विकास समिति में वह कोषाध्यक्ष हैं और अपनी सभी भूमिकाओं का निर्वाह बहुत अच्छे से कर रही हैं।
प्रभादेवी बताती हैं कि वर्ष 2021 से उनके गाँव में विकास संवाद द्वारा एचडीएफसी बैंक परिवर्तन के सहयोग से पहल परियोजना का संचालन किया जा रहा है तभी से वह पहल परियोजना से जुड़ी हुई हैं। पहल परियोजना से जुड़कर उन्हें बहुत फायदा हुआ है। उन्होंने अपने खेत में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग करना बिलकुल बंद कर दिया है। और खाद और उर्वरक के रूप से पहल परियोजना के अंतर्गत सीखी हुई पद्धतियों से केंचुआ खाद, उर्वरक के रूप में घन जीवामृत और कीटनाशक के लिए नीमास्त्र तैयार करती हैं और समय समय पर अपने खेत और पोषण बाड़ी में उपयोग करती हैं।
वह कहती हैं कि, इन देशी तरीकों को अपनाने से हमारी खेती की लागत कम हुई है। कम से कम 5000 रुपए जो फसलों के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशक खरीदने में खर्च होते थे अब वो बचने लगे हैं. इसके साथ ही हमारे परिवार को जहर मुक्त भोजन मिलने लगा है। हमारी पोषण बाड़ी में बारहों महीने चौदह पंद्रह तरह की सब्जियां उगती हैं। अभी इसमें बैगन, टमाटर, कद्दू, कोहड़ा, तोरई, लोटनी साग, पालक, लाल भाजी, हरी भाजी, गाज़र, मूली, धनिया, मिर्च और मुनगा, पपीता के पेड़ भी लगे हुए हैं। अपनी पोषण बाड़ी की सब्जी का स्वाद बाज़ार की सब्जी से ज्यादा अच्छा लगता है, बच्चे भी सब्जी खाना पसंद करते हैं।
यह बहुत अच्छा काम है, इससे अपने घर में ही हमेशा ताजी सब्जियां मिल जाती हैं। बाज़ार से सब्जी नहीं खरीदनी पड़ती है। कभी-कभी सब्जी बेच भी लेते हैं इस तरह महीने में कम से कम 3000 रुपए की बचत हो जाती है और सेहत भी अच्छी रहती है। मैं लोगों से कहती हूं कि सभी अपने घरों में पोषण बाड़ी लगाओ और स्वस्थ और ताजी सब्जी रोज खाओ।
— राजेश भदौरिया