पहचान बदली लेकिन इरादा नहीं
मैं सुषमा धुर्वे, एक समय में राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी टीम की चैंपियन रही। अपने केरिअर को, हॉकी को तो मैं आगे नहीं ले जा पायी, लेकिन आज अपने पैरों पर खड़ी हूँ और अपनी दो बेटियों की परवरिश खुद अकेले करने में सक्षम हूँ।
मैं होशंगाबाद के केसला ब्लॉक के दुलारीपुर गाँव में दोनों बेटियों के साथ रहती हूँ। पहले में अपने माता पिता के साथ रहती थी लेकिन अब उनका निधन हो चुका है। समाज की छोटी सोच और पारिवारिक दबाव के कारण मेरा सपना अधुरा रह गया। मेरा हॉकी खेलना छुड़वा कर मेरी शादी करवा दी गयी। साथ ही मेरे हॉकी खेलने की इच्छा को भी मार दिया गया। फिर समय के साथ मैं दो बेटियों की माँ बनी। ससुराल में मुझे कोई मान सम्मान नहीं मिला और फिर पति ने भी साथ नहीं दिया। बहुत कोशिशों के बाद भी जब मैं पूरी तरह से टूट गयी, तब शादी के लगभग दो साल बाद मैं वो घर छोड़कर अपने मायके वापस आ गयी। खुद को बहुत हारा हुआ महसूस कर रही थी, लेकिन ज़ल्द ही समझ आया कि मेरी 2 बेटियां हैं और जो मेरे साथ हुआ वो मैं उनके साथ नहीं होने दूंगी। एक अच्छी खिलाड़ी होने के बावजूद मुझे वह मुकाम नहीं मिल पाया, लेकिन मैं अपने बच्चों को उस मुकाम पर देखना चाहती हूँ। मैं उनके मन में भी खेल के प्रति भावना जगाऊँगी, जो मैं नहीं बन पाई वह उन्हें बनाऊंगी। जो स्थिति मेरे सामने आई, उन सब से मेरे बच्चियों को नहीं गुजरना पड़ेगा।मैंने गाँव में ही काम कर रही प्रदान संस्था से जुड़कर अपने लिए काम करना शुरू किया, लेकिन कुछ समय के बाद परिस्थितियां ऐसी बनी कि मुझे वहां से काम छोड़ना पड़ा। मुझे पता था कि मैं काम कर सकती हूँ, उसके बाद भी मैं नहीं कर पाई। ऐसा लगा मेरा भविष्य टूट गया, मैं हार गई थी, लेकिन फिर ज़ल्द ही खुद को इन सबसे बाहर निकाला, इसमें मेरी मदद संस्था की ही क्लेरा दीदी ने की। चंदू भैया और सुनीता दीदी ने भी मुझे हिम्मत दी और आगे फिर से काम करने की प्रेरणा भी दी। उनके माध्यम से मैं आजीविका मिशन के स्व सहायता समूह से जुड़ी मैं 12वीं तक पढ़ी थी, इसलिए ज़ल्दी ही चीज़ों को समझने लगी। फिर अपने समूह के अलावा और भी समूहों को देखने लगी, कार्यकर्ता बनी और धीरे-धीरे अपनी पहचान बनाते हुए 2018 से CRP (कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन) के पद पर कार्य कर रही हूँ और 49 समूहों को अकेले देखती हूँ।
आज 3 पंचायत के 13 गाँव के लोग मुझे जानते हैं। जो समाज मुझे पहले बुरी नज़र से देखता था आज वो मुझे सम्मान देता है तो मुझे लगता है कि मैंने मेरी पहचान बना ली है। आज मैंने जो उम्मीद खो दी थी उसे वापस पा ली है। मैं अकेली थी फिर भी मैंने अपने इरादे नहीं बदले, मैंने ये तय कर लिया है कि मैं अपने गाँव में रहकर ही आने वाली पीढ़ी को जागरूक बनाऊंगी। ऐसे करने के लिए सबसे पहले खुद से शुरू करूंगी और ऐसा करने के लिए मैं अपने गांव को भी पूर्ण रूप से तैयार करूंगी। आज मैं एक पूर्ण रूप से सक्षम महिला हूँ और समझ पा रही हूँ कि मैं अपनी बातें बोल सकती हूं, समझ सकती हूं, उसे नई दिशाओं में मोड़ सकती हूँ।
मैं अब खुश हूँ, अच्छा लग रहा है जरुरत के समय मैंने अपने माता-पिता की सेवा भी की और अब अपनी बेटियों को भी पढ़ा रही हूँ। अपने काम के साथ मुझे पहचान मिली, लोगों से जुड़ने का मौका मिला, मै कोशिश करुँगी कि जो मेरे साथ हुआ किसी के साथ ना हो। हम अपना हक मांगेंगे, नहीं मिला तो छीन लेंगे, लेकिन अब हम अपनी पहचान को नहीं डूबने देंगे।
— सुषमा धुर्वे, ग्राम कलारीपरबदी, केसला