सूरज की ऊर्जा से आ रहा है किसानों के जीवन में उजाला
झारखंड के गुमला जिले के जरजट्टा गांव के सोमेश्वर भगत एक समय पर 10 रुपए के लिए भी मोहताज रहे, लेकिन अब उनके पास 500 रुपए रहते हैं। खेती की जमीन है, लेकिन कुएं सूख जाते थे, इस बार जायद यानी रबी और खरीफ के बीच की फसल भी की। पहले आलू की खेती नहीं की थी लेकिन इस बार अक्तूबर से मई के बीच के तीन बार आलू निकाला और 12 हजार रुपए कमाए। तीन बार टमाटर की तुड़ाई करके 10 हजार रुपए अर्जित किए। अब जून में मक्का और मूंगफली डालेंगे। यह बदलाव समग्र कृषि में परिवर्तन की पहल के कारण आया।
इस गांव में सिंचाई के लिए 5 हार्स पावर का सौर ऊर्जा प्लांट लगाया गया है और पानी के लिए तालाब बनाया गया। इससे एक ही वर्ष में 20 छोटे किसानों ने लगभग 3 लाख रुपए की अतिरिक्त आय अर्जित कर ली है, जो उनकी पिछले वर्ष की आय से 30 प्रतिशत ज्यादा है। इसके अलावा इन परिवारों ने अपनी साल भर की सब्जियों की जरूरत को अपनी खेती से पूरा करके लगभग 90 हजार रुपए की बचत भी की।
झारखंड के गुमला जिले जरजट्टा गांव के किसान भी उन्हीं समस्याओं से जूझ रहे थे, जिन समस्याओं से भारत के बाकी किसान जूझ रहे हैं। यानी पानी की कमी, मौसम की अनिश्चितता, छोटी छोटी जोतें, पूंजी का अभाव और कीमतों के उतार चढ़ाव। ऐसे में यहां के 20 किसानों ने मिलकर ऐसा रास्ता बनाया है, जो समाधान की तरफ जाता है। जरजट्टा के किसान संगठ, विकास संवाद के पहल कार्यक्रम और एचडीएफसी-परिवर्तन की साझा कोशिश से खड़े हो रहे इस समाधान के पांच स्तंभ हैं।
पहला स्तंभ है सिंचाई के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग। जरजट्टा में पहल के माध्यम से पांच हॉर्स पावर का सौर ऊर्जा प्लांट लगाया गया है। इसे 20 किसानों की लगभग 12 एकड़ जमीन सिंचित हो रही है।
जरजट्टा के सुखदेव भगत वर्ष 2020 में अपनी डेढ़ बीघा जमीन से एक या दो बार ही सब्जी की फसल ले पाते थे और उनके आय लगभग 15 हजार रुपए तक हो पा रही थी। लेकिन अप्रैल 2022 से अप्रैल 2023 के बीच उन्हें सौर ऊर्जा प्लांट से लगभग 200 मीटर दूर बने तालाब से सिंचाई के लिए पानी मिला और उन्होंने अपनी आय को 28 हजार रुपए तक पहुंचा लिया है।
सुखदेव बताते हैं कि मैं पहले साल के 6 से 8 महीने ही खेती कर पाता था, लेकिन अब स्थितियां बदली हैं और अब पूरे 12 महीने फसल लेने की स्थितियां बन रही हैं। मेरी जमीन में टमाटर, आलू, प्याज, नेनुआ, करेला, गाजर, चुकंदर, कद्दू, तरबूज की उपज हो रही है। पहल कार्यक्रम से स्थापित सौर ऊर्जा प्लांट के प्रबंधन और संरक्षण की जिम्मेदारी जरजत्ता गांव की ग्राम विकास समिति की उठा रही है।
इस पहल का दूसरा स्तंभ है सतही पानी का उपयोग। जरजट्टा के सोलर प्लांट के पास ही एक तालाब का भी निर्माण किया गया है ताकि भूजल का उपयोग न करना पड़े। ग्राम विकास समिति के अध्यक्ष नवरंग भगत कहते हैं कि अब सब जगहों पर बोरिंग हो रही है, लेकिन इससे जमीन के अंदर का पानी खत्म हो रहा है। हम अपनी खेती को भी अच्छा करना चाहते हैं, आय भी बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन साथ ही पानी का संरक्षण भी करना चाहते हैं। इसीलिए सोलर प्लांट को तालाब के पानी से जोड़ा है।
तीसरे स्तंभ के रूप में जरजट्टा में मिट्टी, बीज और फसल प्रबंधन के लिए देशज तकनीक से खाद और कीट प्रबंधन की समाग्री बनाई जा रही है। इसमें गौमूत्र, गोबर, टूटे हुए पत्तों, खेती के अवशिष्ट आदि से कांडापानी, घनजीवामृत बनाया जा रहा है। सुखदेव भगत कहते हैं कि इससे उन्होंने एक बड़ा परिवर्तन देखा है। रासायनिक उर्वरक के इस्तेमाल से उपजी सब्जी की तुलना में देशज तरीकों से उपजी सब्जी का स्वाद बहुत अच्छा तो है ही लेकिन इसके साथ ही इससे उपजी प्याज को हम 10 महीने तक भंडार में रख पा रहे हैं। पहले प्याज 6 महीने तक ही रख पाते थे।
फागेश्वर उरांव एक युवा हैं और कम ही खेती कर रहे थे, लेकिन उन्होंने सोलर प्लांट और देशज तकनीक का उपयोग करके केवल 10 डिसिमल जमीन पर टमाटर की उपज से 12 हजार रुपए का अतिरिक्त लाभ कमाया। कंडा पानी के इस्तेमाल से टमाटर के पौधे 6 महीने तक बने रहे और एक पौधे से साढ़े सात किलो टमाटर दिए।
सोमेश्वर भगत का आंकलन बहुत गहरा है। वे कहते हैं कि कोई व्यक्ति साल में दो लाख कमाने के लिए नौकरी करता है, लेकिन उस नौकरी के लिए मंहगी शिक्षा पर जिंदगी में 20 लाख रुपए खर्च करता है, तो उसकी वास्तविक कमाई कितनी हुई? हमें समझ आया है कि अगर 50 डिसिमल जमीन भी किसी के पास है तो वह साल में 75 हजार रुपए कमा सकता है, बस अच्छा प्रबंधन और अच्छी व्यवस्था चाहिए। अब हम सबको खेती में जुनून के साथ जुटने का मन करता है।
वे कहते हैं कि जब हम विकास संवाद और एचडीएफसी-परिवर्तन से जुड़े तो हमें इस कार्यक्रम पर बहुत विश्वास नहीं था, लेकिन इस समूह ने पहले हमारे गांव और लोगों को समझा और समझ कर सोलर प्लांट की योजना बनाई, तो हमें थोड़ा विश्वास हुआ। दूसरी बात यह कि पहले हम सब लोग अपना अपना फायदा ही देख रहे थे, लेकिन विकास संवाद ने हमें साझा पहल करने के लिए तैयार किया। ईर्ष्या, द्वेष, क्लेश और आपसी भेद को छोड़कर एक साथ बिठाया। अगर ऐसा नहीं होता तो पूरी पंचायत में कोई एक किसान ऐसी सिंचाई व्यवस्था बनाने में सक्षम नहीं था। जब एक साथ जुटे तो सक्षम हो गए।
चौथा स्तंभ है नुकसान से सुरक्षा के साझा पहल की। सोमेश्वर भगत कहते हैं कि अभी कई बड़ी बाधाएं पार करनी हैं और केवल गांव के लोग खुद पहल करके ही इनसे पार जा सकते हैं। अभी पशु पालने वाले लोग अपने मवेशियों को चरने के लिए खुला छोड़ देते हैं, इससे फसल को नुकसान पहुंचता है। अब एक बड़ी सभा करके इसके लिए व्यवस्था बनाने वाले हैं। दूसरी बात यह तय करना है कि सब मिलकर तय करेंगे कि कौन सी फसल करना है ताकि एक बार में किसी सब्जी की बहुत उपज हो जाने के कारण उनके दाम खराब न हो जाएं। तीसरी बात ये कि सबको अपनी अपनी फसल बेंचने मंडी न जाना पड़े, इसलिए मिलकर तय करेंगे कि पूरे गांव की फसल कोई एक दो लोग ही बाजार में बेच आएं।
परिवर्तन की इस पहल का पांचवा स्तंभ है अपने पोषण व्यवहार में बदलाव लाना। व्यापक अनुभव यह है कि जो उत्पादन किया जा रहा है, वह बाजार में बेचने के लिए चला जा रहा है। जरजत्ता में अपने खेत की उपज को अपनी थाली में लाने की बात को मुनाफे और कमाई के बराबर ही महत्व दिया गया है ताकि महिलाओं और बच्चों के पोषण की स्थिति में सकारात्मक बदलाव आ सके।
भारत में खेती के काम से जुड़ी समस्याएं हल की जा सकती हैं। इसके लिए समाज, शासन की नीतियों और सामाजिक संस्थाओं को एक मजबूत रिश्ता, विश्वास और समझ पर आधारित रिश्ता बनाना होगा।
— सचिन कुमार जैन